गीता हमें संघर्षों में समाधान तलाशना सिखाती है – अतुल दुबे

धर्मार्थ नेत्र चिकित्सा संस्थान में हुई गीता जयंती पर वैचारिक संगोष्ठी
इटावा। गीता जयंती पर वैचारिक संगोष्ठी का आयोजन राहतपुरा स्थित श्री शंकर दयाल धर्मार्थ नेत्र चिकित्सा संस्थान में भारत विकास परिषद की धर्मार्थ शाखा द्वारा आयोजित किया गया,जिसकी अध्यक्षता डॉ. विद्याकांत तिवारी और संचालन संस्कृत कॉलेज के पूर्व प्राचार्य महेश चंद्र तिवारी ने किया।
मुख्य अतिथि अतुल दुबे, अध्यक्ष डॉ. विद्याकांत तिवारी ने संगोष्ठी का शुभारंभ गीता ग्रंथ और भारत माता के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण से किया।
मुख्य अतिथि संपादक अतुल दुबे ने कहा कि समाज को जीवंतता प्रदान करके जीवन के विभिन्न संघर्षों में स्पष्ट दिशा देने वाले विश्व के सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ गीता का जितना लाभ हम सबको लेना चाहिए, वह हम अभी ले नहीं पा रहे हैं, यह चिंता का विषय होना चाहिए। गीता हमें संघर्षों में समाधान तलाशना सिखाती है। अध्यक्षता कर रहे डॉ विद्याकांत तिवारी ने आज़ादी पूर्व से लेकर अब तक लोकमान्य तिलक से मोदी तक, सबके संघर्ष के केंद्र बिंदु के रूप में गीता की उपस्थिति और महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि अगर बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के हाथ में गीता थी तो गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर, अरविंदो घोष, और महात्मा गांधी की प्रेरणा भी गीता रही। विनोबा भावे का भू दान आंदोलन तो गीता पर ही आधारित रहा और वे गीता के आधुनिक भाष्यकार रहे। राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद जैसे तमाम क्रांतिकारियों के एक हाथ में पिस्टल और एक हाथ में गीता रही तब वे संघर्ष कर पाए। आचार्य देवेश शास्त्री ने गीता पर विस्तृत चर्चा की और सूत्र रूप में बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि किसी भी कार्य के कर्ता नहीं निमित्त बनो। इस अवसर पर धर्मार्थ शाखा के महेश चंद्र तिवारी ने सभी का आभार व्यक्त किया। विनोद त्रिपाठी, साहित्यकार अनुराग मिश्र, गणेश ज्ञानार्थी, सुधीर मिश्र, डा. जय कृष्ण तिवारी, घनश्याम तिवारी, अवधेश सविता, रमाकांत पाठक, महेश कुमार बाथम सचिव, के के त्रिपाठी, रणवीर सिंह गौर, राजीव नयन त्रिपाठी, भगवान दास शर्मा प्रशांत ,अंजनी रंजन दीक्षित आदि ने महत्व पूर्ण विचारों से गोष्ठी को उच्च शिखर स्पर्श कराया।

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